Friday, May 9, 2008

दिल्ली में JH-01, देख कर कितना सुकू मिलता है

.... लगता है जाकर गाड़ी चलाने वाले से रोक कर पुछू, आप झारखण्ड में कहा से हैं??? JH-01 रांची में गाडियों का नम्बर प्लेट होता है, मतलब की गाडियों का रजिस्टेसन नम्बर। बड़ा अच्छा अच्छा सा लगता है। दिल्ली में रहते हुए ७ साल हो गए लेकिन अपनी मिटटी का तो नम्बर प्लेट भी लुभाता है । आपको भी अपने शहर का नम्बर लुभाता होगा, बाहर में.... है ना....

4 comments:

डॉ .अनुराग said...

कुछ दिन रहेगे तो इन सबसे ऊपर आ जायेंगे हम भी जब सूरत मे पढने पहुंचे टू अक्सर उप का नंबर देखकर भावुक हो जाते.....पर सामने वाला का रेस्पोंस देखकर ओर एक वक़्त गुजरकर हमारी आदत सुधर गई....

मैथिली गुप्त said...

आज से दस साल पहले मैं अपनी बाइक MP-04 G-1881 चलाता था तो अनेकों दोस्तों ने रोका था और हम भोपाली लोग रुक कर कट चाय पीकर बतोले बाजी कर लिया करते थे.
अब तो लगता है कि दिल्ली वाला ही बन गया हूं. वैसे अभी भी मेरी पहली बाइक मेरे पास मौजूद है, भले खंडहर की हालत में हो.

Rajesh Roshan said...

@ अनुराग जी हो सकता है सुधर जाऊ लेकिन मैं जैसा हू वैसा ही रहना चाहता हू. अपनी माटी को लेकर कम से कम नही बदलना चाहता

@मैथिली जी दिल्ली बड़ा शहर है यहा लोग के पास दूसरो के लिए समय नही है, कम से कम हम तो वैसे न बने, ऐसे ही लोगो को देख खुश होना चाहिए. नम्बर प्लेट देख कर ही सही

Udan Tashtari said...

निश्चित ही. शायद आजीवन लुभाता ही रहेगा माटी प्रेम तो. किसी भी रुप में क्यूँ न हो.
-----------------------------------आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.

शुभकामनाऐं.
समीर लाल
(उड़न तश्तरी)